Wednesday, May 28, 2014

प्राणायाम- रहस्य - विज्ञान

प्राणायाम का अर्थ मात्र ब्रीदिंग exercise या व्यवस्थित रूप से साँस लेना और छोड़ना मात्र ही नहीं है, अगर ऐसा होता तो इसका नाम वायु आयाम या श्वासायाम होता.

प्राण क्या है ?

प्राण एक चैतन्य ऊर्जा है जो जड़ और चेतन दोनों में व्याप्त है. चैतन्य वस्तुओं में प्राण सक्रीय या क्रियाशील दिखाई देती है और जड़ वस्तुओं में यह निष्क्रिय या सुप्त अवस्था में दिखाई देती है. प्राण सूक्ष्मतम मूलभूत तत्व है जो सृष्टि  के समस्त बल, शक्तियों और क्रिया का आधार है.


 मनुष्य जीवित रहने के लिए प्राण शक्ति को वायु, जल, सूर्य-प्रकाश, भोजन , विचारों , गहरी नींद , संतुष्ट मनःस्थिति और परिवेश से निरंतर ग्रहण करता रहता है. प्राण तत्व वायु के oxygen में प्रचुर रूप से व्यप्त है इसलिए वायु को प्राण-वायु भी कहा जाता है. लेकिन प्राण की सत्ता वायु से भिन्न है . मृत व्यक्ति को oxygen - cylinder लगा देने से भी , उसका जीवन वापिस नहीं लाया जा सकता है.

प्राणायाम क्या है ?

प्राणायाम यानि प्राण का आयाम या विस्तार . अर्थात सर्वव्यापक प्राण को निश्चित विधि द्वारा धारण कर उसका विस्तार करना. वायु में प्राण प्रचुर मात्र में पाया जाता है जिसे हम सहज में ग्रहण कर सकते हैं. श्वास -क्रिया द्वारा विश्व में व्याप्त प्राण तत्व को पर्याप्त मात्र में खींच कर शरीर  में उसका उचित भण्डारण कर,  शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य वृद्धि करने के अलावा  अनेक अतीन्द्रिय शक्तियों का स्वामी बना जा सकता है. श्वास -प्रश्वास  की लयबद्ध , तालबद्ध और क्रमबद्ध व्यवस्थित प्रक्रिया ही प्राणायाम है.
                               
     

प्राणायाम साँस की गति को तेज़ करना नहीं वरन ताल-बद्ध और क्रम-बद्ध करना है. इस ताल- लय  और क्रम में हेर फेर के आधार पर अनेक प्रकार के प्राणायाम बने हैं , जिनके विभिन्न प्रकार के प्रयोजनों की पूर्ति के लिए विविध प्रकार के उपयोग होते हैं.  

प्राणायाम की आवश्कता

शरीर की प्रत्येक  कोशिका का जीवित रहने के लिए तीन तत्वों की परम आवश्यकता  पड़ती है---रक्त, वायु और विद्युत. इन तीनों  की पूर्ति जितनी अच्छी होगी उसी अनुपात में वह कोशिका सजीव, स्वस्थ और सुदृढ़ होगी. इन तीनो में एक की भी कमी से वह कोशिका दुर्बल, निस्तेज और रुग्ण हो जाएगी. अतः स्वस्थ रहने के लिए निरंतर  रूप से इन तीनों  तत्वों की सप्लाई होती रहनी आवश्यक है .

प्राणायाम-शुद्ध वायु

सामान्यता हम उथली, आधी-अधूरी और अस्त-व्यस्त तरीके से साँस लेते हैं इससे हमारे फेफड़े का  केवल 1/6 भाग ही प्रभावित हो पता है शेष भाग निष्क्रिय अवस्था में पड़ा रहता है. फेफड़ों द्वारा प्राचुर मात्र में वायु ग्रहण न करने के कारण अधिकांश एयर-सेल्स में oxygen परिवर्तन की प्रक्रिया नहीं हो पाती है. अल्प oxygen , रक्त के संचरण से दूषित कार्बनिक एसिड  शरीर को बाहर नहीं निकल पता है , यह दूषित विकार रक्त के साथ पुनः ह्रदय से फेफड़ों में भेज दिया जाता है वहां फिर उसे पर्याप्त  वायु न मिलाने से वही अशुद्ध रक्त पुनः धमनियों से पूरे शरीर में फ़ैल जाता है . इस प्रकार बीमारी, रोग और दुर्बलता का एक कुचक्र बन जाता है और अंतत व्यक्ति विशेष को अपने स्वाथ्य से वंचित हो जाना पड़ता है.



स्वास्थ्य रक्षा  हेतु रक्त का शुद्ध और सशक्त रहना आवश्यक है. रक्त के शुद्ध रहने का मुख्य आधार oxygen है. शुद्ध  रक्त का 1/4 भाग oxygen होता है. रक्त और oxygen मिल कर ही oxy -hemoglobin बनाते हैं जिसकी प्रचुरता टूटे-फूटे कोशिकाओं और दूषित और विषेले  तत्वों को बाहर निकल कर शरीर  को स्वाथ्य, उत्साह और सक्रियता प्रदान करना होता है.

प्राणायाम - जीव विद्युत

हमारे शरीर में लगभग 72,000 अति सूक्ष्म नाड़ियाँ हैं. यह नाड़ियाँ मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी से निकल कर बिजली की तारों की भांति समस्त शरीर में फ़ैल जाती है. शारीरिक संस्थान में गड़बड़ी होने   से  रक्त संचार में बाधा पहुंचती है. शरीर के विभिन्न अंगों को समुचित मात्र में रक्त न मिलाने के कारण विजातीय या विषेले  तत्वों का निष्काशन नहीं हो पता है. इससे शरीर में विषाक्तता बढती है विभिन्न रोगों का आक्रमण होता हैं और मानव दुर्बल और रुग्ण हो जाता है.

ऑटोनोमस  नर्वस सिस्टम या स्वयं संचालित श्वास - प्रश्वास   क्रिया वेगस नर्व द्वारा गतिशील होती है. दायें -बाएं नासिका स्वरों के चलने से इडा-पिंगला नाड़ियों में लयबद्ध घर्षण होता है जिससे जीव -विद्युत का उत्पादन होता है और वेगस नर्व प्रभावित होती है.

वेगस नर्व का सीधा सम्बन्ध अचेतन मस्तिष्क से होता है जो शरीर में हार्मोन, नर्वस सिस्टम, माँस -पेशियों के अन्कुचन- प्रंकुचन  , विभिन्न ग्लैंड्स , कोशिकाओं और अवयवों के कार्य-पद्धतियों को निश्चित रूप से प्रभावित करता है.

प्राणायाम करने से नाड़ियों का शोधन होता है. जिससे शारीरिक और मानसिक परिशोधन होता है.

प्राणायाम - स्टेम सेल्स

स्टेम सेल्स मूलभूत कोशिकाएं होती हैं जो हमारे शरीर में 200 प्रकार की कोशिकयों का निर्माण करते हैं, यही आगे जा कर शरीर के अलग-अलग अंगों की बनावट और कार्य-प्रणाली के लिए उत्तरदायी होते हैं.



जो स्टेम सेल्स 9 महीने में पूरे एक शरीर का निर्माण करने में सक्षम हैं , प्राणायाम के द्वारा हमारे ब़ोन - मैरो  , मस्तिष्क , रीढ़, त्वचा, pancreas और रक्त नलिकाओं में प्रचुरता की मात्र में स्थित स्टेम सेल्स हमारे शरीर में बिना चीड़-फाड़ के उस जगह जा कर प्रत्यारोपित हो जाते हैं जहाँ इनकी जरुरत होती है. 
  
इस प्रकार वे वहां के रोगी कोशिका ,अवयव और अंग की मरम्मत कर उसे नवजीवन प्रदान करतें हैं. अतः प्राणायाम द्वारा हमारे शरीर के आधारभूत स्टेम सेल्स अपनी संख्या बढा कर, स्ट्रोंग होकर और oxygen से युक्त होकर क्षतिग्रस्त अंग या कोशिका को दुरुस्त करते हैं  और हमें नवजीवन और स्वास्थ्य प्रदान करते हैं.

प्राणायाम के लाभ

शारीरक

शरीर विज्ञान में मानव शरीर के अन्दर काम  करने वाली भिन्न-भिन्न प्रणालियाँ हैं. इनमें प्रमुख हैं- तंत्रिका तंत्र, ग्रंथि तंत्र, श्वास  तंत्र, रक्त परिसंचरण तंत्र  एवं पाचन तंत्र . इन सभी पर प्राणायाम का गहरा प्रभाव पड़ता है.

प्राणायाम से देह के विभिन्न हिस्सों और अवयवों पर दबाव पड़ता है. इस दबाव से उस क्षेत्र का रक्तसंचार बढ  जाता है. रक्त के दौरे सुव्यव्स्तित ही जाने से उस अंग के स्वस्थता प्रभावित होती है.

मानसिक

प्राणायाम द्वारा हमारे स्नायु - मंडल, ज्ञान तंतु और मस्तिष्क पर पूर्ण  प्रभाव पड़ता है. हमरी चेतना और बुद्धि विकसित होने लग जाती है, बुद्धि की ग्राह्यता बढ जाती है. अति सूक्ष्म विषयों को समझने की शक्ति आ जाती है.

 clairvoyance [अतीन्द्रिय ज्ञान ], telepathy [ विचार सम्प्रेषण ] , extra sensory perception [अतीन्द्रिय क्षमता] , pre- recognition [ पूर्वाभास], psychokinesis [ जड़ और चेतन को प्रभावित करना], पुनर्जनम,अध्यात्म रहस्यवाद की परतों को समझाने की क्षमता विकसित होने लग जाती है.

अध्यात्मिक

यथोचित शारीरक और मानसिक सुधार आने से आध्यत्मिक उत्थान आरंभ हो जाता है. रजोगुण और तमोगुण का नाश होता है, सतोगुण का अविर्भाव होता है.

मस्तिष्क की कल्पना, धारणा, इच्छा , निर्णय, नियंत्रण, स्मृति, प्रज्ञा आदि  शक्तियों का उत्पादन, विकास और परिमार्गन होता है. प्राणायाम के नियमित  अभ्यास से कई प्रकार की रिद्धियों-सिद्धियों की प्राप्ति सहित कुण्डलिनी-शक्ति का जागरण भी संभव हो पाता है. 

20 मिनट प्रतिदिन प्राणायाम करने से मात्र 3 महीनों में हमारा औरा [Aura] जो साधारणतया  2 से 8 इंच तक फैला होता हैं वह 6 फीट तक विस्तार पा लेता है. प्राणायाम एक हानिरहित योगाभ्यास है. शारीरिक , मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य और  विकास के लिए हमें नियमित प्राणायाम करना चाहिए.

 द्वारा 

गीता  झा  

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