आलोक अपनी पत्नी सीमा के साथ वैवाहिक जीवन के 15 बसंत देख चुका था. हंसमुख मिज़ाज और अच्छी कद - काठी का आलोक सदैव अपनी पत्नी का विश्वासपात्र रहा था. लेकिन फिर न जाने क्यों अब वह सीमा की छोटी से छोटी बात को काफी तूल दे देता था, और लड़ने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.
सीमा पहले तो अपने जीवन में आये इस चक्रवात का कारण नहीं जान सकी ; लेकिन फिर उसे अपने विश्वसनीय सूत्रों से पता चला की उसके पतिदेव आज कल किसी के इश्क में पागल हैं.
सीमा आश्वस्त थी कि जो वफादारी 15 साल चली वह जीवन पर्यंत चलेगी. फिर जब उसने अपने परिवार की नीव हिलते देखी तो उसने अपनी परिस्थितियों का अवलोकन करना आरम्भ कर दिया.
सीमा पहले तो अपने जीवन में आये इस चक्रवात का कारण नहीं जान सकी ; लेकिन फिर उसे अपने विश्वसनीय सूत्रों से पता चला की उसके पतिदेव आज कल किसी के इश्क में पागल हैं.
सीमा आश्वस्त थी कि जो वफादारी 15 साल चली वह जीवन पर्यंत चलेगी. फिर जब उसने अपने परिवार की नीव हिलते देखी तो उसने अपनी परिस्थितियों का अवलोकन करना आरम्भ कर दिया.
टीवी सीरियल - क्या हुआ तेरा वादा |
विवाहत्तेर सम्बन्ध आज कल फैशन की अवधारणा के रूप में स्थापित हो चुके हैं. विवाह जैसी संस्था का निर्माण ही इसलिए हुआ था कि स्त्री-पुरुष सामाजिक मर्यादायों और नियमों का पालन करते हुए यौन संबंधों की पवित्रता को बनाये रखे.
इधर दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले अधिकतर धारावाहिक विवाहत्तेर संबंधों को महिमा मंडित कर प्रदर्शित किये जाते हैं , जिनसे प्रेरित होकर बहुत से दंपत्ति अपने लिए नई संभावनाए तलाशने लग जाते हैं.
एक अवधि के पश्चात पति-पत्नी के संबंधों में एक प्रकार का ठहराव आ जाता हैं. बच्चों की पढाई -लिखाई, घर- गृह्थी, आर्थिक समस्याएँ दोनों को इतने उलझा कर रखती हैं की दोनों जब भी एक-दूसरे के साथ बैठते हैं, तो किसी न किसी समस्या पर ही वार्ता कर रहे होते हैं.
संबंधों में किसी भी प्रकार की नवीनता का समावेश नहीं होने से वे बासी हो जाते हैं. तब वो अपने जीवनसाथी को घर की मुर्गी दाल बराबर समझने लग जाते हैं . इस बढते हुए तनाव और दूरी के कारण वे अपना सुख अन्यंत्र खोजने लग जाते हैं.
सामान्यता अन्य सामाजिक- पारिवारिक संबंधों को बनाये रखने के लिए निरंतर प्रयास किये जाते हैं लेकिन वैवाहिक संबंधों को ज्यों के त्यों परिस्थियों के हवाले कर दिया जाता हैं. एक बार विवाह होने के बाद इस संस्था में किसी भी प्रकार की उत्कृष्टता का प्रयास नहीं किया जाता हैं. धीरे -धीरे समय के साथ इस संस्था में सड़न पैदा होने लगाती हैं.
गृहस्थी, बाल बच्चों, दाल रोटी की चिंता में फंसी पत्नी की आँख तब खुलती हैं जब पतिदेव परनारी के चक्कर में मारे-मारे फिरते हैं.
वीणा एक प्राइवेट फार्म में कार्यरत हैं. अत्यंत महत्वाकांक्षी महिला होने के कारण वह अपनी गृहस्थी पर कम ही ध्यान दे पाती थी. विवाह के 10 वर्षों के पश्चात् उसने ध्यान दिया की उसका पति राकेश धीरे -धीरे उससे दूर होता जा रहा हैं. दोनों के मध्य यौन संबंधों में भी निरंतर कमी आती जा रही थी.
इधर दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले अधिकतर धारावाहिक विवाहत्तेर संबंधों को महिमा मंडित कर प्रदर्शित किये जाते हैं , जिनसे प्रेरित होकर बहुत से दंपत्ति अपने लिए नई संभावनाए तलाशने लग जाते हैं.
एक अवधि के पश्चात पति-पत्नी के संबंधों में एक प्रकार का ठहराव आ जाता हैं. बच्चों की पढाई -लिखाई, घर- गृह्थी, आर्थिक समस्याएँ दोनों को इतने उलझा कर रखती हैं की दोनों जब भी एक-दूसरे के साथ बैठते हैं, तो किसी न किसी समस्या पर ही वार्ता कर रहे होते हैं.
संबंधों में किसी भी प्रकार की नवीनता का समावेश नहीं होने से वे बासी हो जाते हैं. तब वो अपने जीवनसाथी को घर की मुर्गी दाल बराबर समझने लग जाते हैं . इस बढते हुए तनाव और दूरी के कारण वे अपना सुख अन्यंत्र खोजने लग जाते हैं.
सामान्यता अन्य सामाजिक- पारिवारिक संबंधों को बनाये रखने के लिए निरंतर प्रयास किये जाते हैं लेकिन वैवाहिक संबंधों को ज्यों के त्यों परिस्थियों के हवाले कर दिया जाता हैं. एक बार विवाह होने के बाद इस संस्था में किसी भी प्रकार की उत्कृष्टता का प्रयास नहीं किया जाता हैं. धीरे -धीरे समय के साथ इस संस्था में सड़न पैदा होने लगाती हैं.
गृहस्थी, बाल बच्चों, दाल रोटी की चिंता में फंसी पत्नी की आँख तब खुलती हैं जब पतिदेव परनारी के चक्कर में मारे-मारे फिरते हैं.
वीणा एक प्राइवेट फार्म में कार्यरत हैं. अत्यंत महत्वाकांक्षी महिला होने के कारण वह अपनी गृहस्थी पर कम ही ध्यान दे पाती थी. विवाह के 10 वर्षों के पश्चात् उसने ध्यान दिया की उसका पति राकेश धीरे -धीरे उससे दूर होता जा रहा हैं. दोनों के मध्य यौन संबंधों में भी निरंतर कमी आती जा रही थी.
खुले विचारों की वीणा राकेश द्वारा अपनी महिला सहयोगियों की प्रसंशा हमेशा हँसी में उड़ा देती थी. लेकिन एक दिन उसने एक प्रसिद्ध पांच- सितारा होटल में अपने पति को अपनी एक महिला सहयोगी के साथ हाथों में हाथ डाल कर हँस-हँस कर बातें करते देखा, उसके पावों तले ज़मीन खिसक गयी .
शरू में उसने भी अन्य महिलायों की तरह अपने पति की उस महिला सहयोगी को ही चरित्रहीन ठहराया . लेकिन गहराई से अवलोकन करने में उसने पाया जिस राकेश से विवाह करने के लिए वो अपने परिवार और समाज से लड़ी थी, जिसके प्रेम को लेकर वो इतनी आश्वस्त थी. उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा की राकेश उसका प्रेम दूसरी औरत के साथ बाँट सकता हैं. इसका कारण उसका राकेश के प्रति उपेक्षा पूर्ण रवैया ही था.
फिल्म सिलसिला में विवाहत्तेर सम्बन्ध |
आजकल संयुक्त परिवार विघटित होते जा रहें हैं. व्यक्ति विशेष के ऊपर बुजुर्गों का निरंत्रण नहीं रह गया हैं. साथ ही कंधे से कन्धा मिला कर कम करने वाली अत्यंत महत्वाकांक्षी पत्नी भी संबंधों में दूरी पैदा कर सकती हैं.
एक निशित उम्र के बाद स्त्रियाँ यौन संबंधों के प्रति काफी उदासीन हो जाती हैं. और पतियों के साथ उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाने लग जाती हैं. पुरुष भी भावनात्मक सहयोग और यौन सुख के लिए दुसरे विकल्पों की तलाश में लग जाता हैं.
अधेड़ उम्र मैं काफी पुरूषों को उच्च-रक्त चाप, मधुमय, नपुंसकता, गठिया, जोड़ों में दर्द आदि व्याधियों का सामना करना पड़ जाता हैं, ऐसे में पत्नी की उपेक्षा उन्हें काफी हताश और कुंठित कर देती हैं और वे मित्रता के बहाने दूसरी स्त्रियों का साथ खोजने लग जाते हैं.
विवाहत्तेर सम्बन्ध पारिवारिक एवम वैवाहिक संस्थाओं की मर्यादा और पवित्रता भंग करतें हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना हैं की यदि पति-पत्नी निश्चित रूप से प्रतिदिन कुछ समय एक-दूसरे के साथ व्यतीत करे एवं पारिवारिक तथा दूसरी समस्याओं की जगह अन्य विषयों पर अपने विचार अदन-प्रदान करे तो भावनात्मक असुरक्षा का तो सवाल ही नहीं उढ़ता हैं.
एक निशित उम्र के बाद स्त्रियाँ यौन संबंधों के प्रति काफी उदासीन हो जाती हैं. और पतियों के साथ उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाने लग जाती हैं. पुरुष भी भावनात्मक सहयोग और यौन सुख के लिए दुसरे विकल्पों की तलाश में लग जाता हैं.
अधेड़ उम्र मैं काफी पुरूषों को उच्च-रक्त चाप, मधुमय, नपुंसकता, गठिया, जोड़ों में दर्द आदि व्याधियों का सामना करना पड़ जाता हैं, ऐसे में पत्नी की उपेक्षा उन्हें काफी हताश और कुंठित कर देती हैं और वे मित्रता के बहाने दूसरी स्त्रियों का साथ खोजने लग जाते हैं.
विवाहत्तेर सम्बन्ध पारिवारिक एवम वैवाहिक संस्थाओं की मर्यादा और पवित्रता भंग करतें हैं. मनोवैज्ञानिकों का कहना हैं की यदि पति-पत्नी निश्चित रूप से प्रतिदिन कुछ समय एक-दूसरे के साथ व्यतीत करे एवं पारिवारिक तथा दूसरी समस्याओं की जगह अन्य विषयों पर अपने विचार अदन-प्रदान करे तो भावनात्मक असुरक्षा का तो सवाल ही नहीं उढ़ता हैं.
पति - पत्नी नियमित रूप से कुछ समय एक साथ जरुर बिताएं |
कामकाजी व्यस्त महिलायें भी नियमित कुछ समय पति के साथ गुजारे. पति की छोटी से छोटी बीमारी के प्रति सजग रहें. उनके दवा लेने का समय, डाक्टर से मिलाने का समय आदि बातें नोट कर कर रखे.
उम्र के साथ स्वाभाव को चिड़चिड़ा न बने दे और यौन संबंधों मे शिथिलता न आने दे. समय मिलाने पर पति के साथ अधेड़ उम्र में भी हिल स्टेशन जा कर कुछ अन्तरंग समय व्यतीत करे. सामान रूचि वाले कार्य यथा चित्रकारी, योग, ध्यान, व्यायाम इत्यादि साथ-साथ करे.
इसके अतिरिक्त अगर आपको पता चलता हैं की आपके पति परस्त्री संग कर रहें हैं तो बिना अपना संयम खोये उन्हें साफ शब्दों में विवाह की लक्ष्मणरेखा का ध्यान करवाएं . अपनी नाराज़गी खुले तौर पर व्यक्त करे, साथ ही अपने और अपने पति के संबंधों का विश्लेषण कर योग्य सुधार करे.
अधेड़ उम्र में संबंधों को मर्यादित करना आवश्यक हैं. इसी से सामाजिक और पारिवारिक मूल्य बचाए जा सकेंगे.
गीता झा
No comments:
Post a Comment