दुनिया परे विश्राम हैं । ।
दुःख सुख हानि लाभ में
जो भूत भविष्य काल में
न रोवें देख बदनामी न हँसतें होत शुभ नामी
हम तो रमते राम हैं
दुनिया परे विश्राम हैं । ।
कभी सोवुं भूपति द्वार में
छत्री पलंग बिस्तर में
भोजन छहों रस के जमूं
जिव्हा रमे रस स्वाद में
हम तो रमते राम हैं
दुनिया परे विश्राम हैं । ।
कभी जाय जंगल में बसुं
वृक्षावली बीच में रंहूँ
फल फूल भोजन मैं ग्रहूँ
नित नियम में रसना कसुं
हम तो रमते राम हैं
दुनिया परे विश्राम हैं । ।
कभी रेशमी परिधान में
कभी सूत्र सूक्ष्म प्रमाण में
कभी लक्ष्मी पति के पास में
कभी योगियों के साथ में
हम तो रमते राम हैं
दुनिया परे विश्राम हैं । ।
कभी दान दीनों को दऊँ
ध्यानी बनी प्रभु को भजूं
इस से हमें नाद हैं
शुभ काम ही से काम है
हम तो रमते राम हैं
दुनिया परे विश्राम हैं । ।
द्वारा
ध्यान योगी मधुसुदन दास जी
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