Monday, July 1, 2013

Ten Commandments of Love







One
जन्म से हमारीवृति गलत तरीकेसे प्रशिक्षित हुईहै हमेंलगता है कीहम बचपन सेही प्रेम कीकला में निपूर्णहैं और यहवृति हमें स्वाभाविकतौर से जन्मसे मिली हुईहै मात्रपैदा होने सेकोई प्रेमी नहींहो जाता है हाँ प्रेमीहोने की एकसम्भावना एक बीजहममें उपस्तिथ हैजो प्रशिक्षण औरअनुशासन के माध्यमसे एक पुष्पवाटिका बन सकतीहै

Two

अगर किसी कोप्रेम देने सेआपको लगे कीआपमें कोई कमीहो गई है, तो समझ लेनाचाहिए की प्रेमका अनुभव हीनही हुआ है अगर आपकिसी को प्रेमदेते हैं औरभीतर लगता हैकी कुछ खालीहुआ है , तोसमझ लेना चाहिएकी जो आपनेदिया है वहकुछ और होगा, प्रेम कदापि नहीं होगा अगर आपकोलगे की आपकेप्रेम करने सेकुछ प्रेम कमहो रहा हैतो आप प्रेमकी अनुभूति सेकोसों दूर हैं  

Three

प्रेम जितना भी दो, घटेगा नहीं जितनाभी मिले बढेगानहीं अगरपूरा सागर भीप्रेम का हमारेऊपर टूट जाएतो भी रत्तीभर बढेगा नहींऔर पूरा सागरलुटा दू प्रेमका तो भीरत्ती भर कमनही होगा  

Four

जिस दिन हमेंऐसा अनुभव होताहै की मेरेपास ऐसा प्रेमहै , जो मेंदे डालू , तोभी उतना हीबचेगा जितना था, उसी दिन हमारीदूसरों से प्रेमकी मांग कमजोरहो जाती है 

Five

आजीवन हम सबदूसरों से प्रेमकी भिक्षा मंगातेचले जाते हैं बचपन मेंजवानी में औरबुढ़ापे में भीहमारी प्रेम कीमांग बनी रहतीहै क्योंकिहमें गलतफहमी होतीहै की दूसरोंसे मिला प्रेम, हमरे अन्दर के प्रेमको बड़ा देगा लेकिन जोचीज़ मिलने सेबढ़ जाए वहकुछ और होगाप्रेम नहीं  

Six

जो बांटने औरदेने से घटजाता है वहवासना है उसे भूलकर भीप्रेम नहीं समझना काम औरवासना को नापाजा सकता हैकेवल प्रेम हीएक ऐसी immeasurable unit हैजिसको नापा नहींजा सकता है, यह अमाप है 

Seven

प्रेम जितना घनीभूत होगा, जितना गहरा होगाउतना ही पवित्रहोता चला जाताहै जिसव्यक्ति के जीवनमें जितना अधिकप्रेम होगा , उतनाही उसके जीवनमें sexuality कम होतीचली जाती है व्यक्तिविशेष कीकामेच्छा की अत्यंतप्रबल और अनियंत्रितवृति दर्शाती हैकी जीवन मेंप्रेम का आभावहै  

Eight

प्रेम प्रार्थना है एक सच्चा प्रेमीवही है जोप्रताड़ना, ईर्ष्या , दोषारोपण, माल्कियतकी भावना सेमुक्त होता है  मैंने  तुझेप्रेम किया इतनाही काफी है बदले मेंकुछ भी प्रतिकारचाहने वाला कुछऔर कर सकताहै लेकिन सच्चाप्रेम नहीं करसकता है  

Nine

अधितर प्रेम का अर्थलोग एक प्रकारके एकाधिकार यामाल्कियत से लेतेहैं जिसक्षण तुम प्रेमके नाम परकिसी भी जीवितचीज़ पर अपनाअधिकार जमाते हो , तुमउसे मार डालतेहो तबतुम चिंतित होगे, तुमें लगेगा की तुमनेतो प्रेम कियालेकिन सामने वालेने तुमें धोखादिया यादरखना यदि तुमेंसच्चा प्रेम होगातो तुम कभीभी असुरक्षित, भयभीतऔर ईर्ष्यालु नहींमहसूस करोगे  

Ten 

जो व्यक्ति प्रेमको समझ लेताहै वह परमात्माको समझने कीफ़िक्र छोड़ देताहै प्रेमऔर परमात्मा एकही डायमेंशन कीचीजें हैं । प्रेमचरम नियम है


 

द्वारा

गीता झा 

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