मैंने घडी मेंसमय देखा, रातके दो बजरहे थे ।मेज पर रखेगिलास का पानीमैं एक हीसाँस में पीगई । सरसरीतौर पर मैंनेफिर अपना नोटपढ़ा ....
" आदरनीय मम्मी और पापा, मुझे याद है, एक बार हमारीक्लास टीचर नेकहा था ---इतिहासअपने को दोहराताहै । जोकदम दीदी नेतीन साल पहलेउठाया था उसीको आज मैंदोहरा रही हूँ। जिस यातनाऔर हैवानियत कीदुनिया में आपलोग मुझे धकेलनाचाहते हैं, उसकीअंतिम परिणिति भीइसी में होती।
मैं जो कदम उठारही हूँ इसमेंकिसी का दोषनहीं है ।आशा है आपलोग मुझे माफ़करेंगें ।"
मेरा गला सुखरहा था , होठोंपर जीभ फेरतेहुए मैंने नोटके नीचे हस्ताक्षर किये " नीरजाशर्मा " और उसकेऊपर पेपर वेटरख उसे ऐसीजगह रख दियाकी कमरे मेंघुसते ही उसकेऊपर नज़र चली जाये।
कमरे में कोनेमें सुराही रखी हुईथी । मैंउठी और सुराहीसे गिलास मेंपानी डालने लगी। तभी बगलके कमरे सेआवाज आई " निराअब सोई नहींबेटी ? और कितनापढेगी ? सोजा सुबह उठका पढना ।"
तो मम्मी अबतक जग रही है। लम्बे समयतक गठिया कीबीमारी से लड़नेवाला उनका शरीररात और दिनके अंतर कोभूल चुका है ।असहनीय पीड़ा केबीच कुछ हीक्षण होते थेजब वे सोपाती थी ।वे क्षण भीशायद मेरी वजहसे उनसे छिनगए थे ।
लाइट बंदकरके मैं पलंगपर आ गई। सोते हीदीपा ने अपनेहाथ पैर मेरेऊपर चढ़ा लिए। पहले दीदीके साथ सोतीथी । मगरजब से दीदीगई , तबसे वहमेरे साथ हीसोती है ।
तभी पापा केखांसने की आवाज़आई । पापाकी खांसी कितनीबढ़ गई है। अपना ज़राभी ख्याल नहींरखते हैं। कितनीबार कहा कीदवाई ले आईये, लेकिन हर बारहंस कर बोलतेदेतें हैं " जिसदिन निरा बेटीकी डोली उठेगी, उसी दिन मेरीसारी बीमारियाँभी ठीक होजाएँगी । "
रोज़ी के घरएक तस्वीर देखिथी । सलीबपर टंगे हुएयीशु की ।पुरे जगत कीपीड़ा आत्मसात करनेका दर्द थाउनके चहरे पर। कितनी समानताहै पापा औरयीशु में ।लेकिन यीशु सलीबपर चढ़ करखुदा बनगए और सभीउन्हें पूजते हैं, मगरमैं जानती हूँमेरे पापा केसाथ ऐसा नहींहोगा । नहींपापा मैं आपकेसलीब की आखिरीकील नहीं बनूँगी।
दीदी आज अँधेरेमें तुम्हारा दिखायाहुआ रास्ता कीसही लग रहाहै । आखिरकोई कितने समयके लिए यादरखेगा ? एक दिनवह भी आएगाजब तुम्हारी तरहपापा मम्मी औरसब लोग मुझेभूल जाएंगें ।
आपने सीने परसे दीपा काहाथ उठा करमैंने तकिये केनीचे टटोला। मेरा हाथमें एक छोटीसे शीशी आगई । "कीटनाशकदवाई " शायद उसकीएक खुराक हीमेरे लिए काफीहोगी । फिरसबको हमेशा केलिए सभी मुसीबतोंसे छुटकारा मिलजायेगा ।
अचानक लगा खिडकीका पर्दा हवाके झोके सेऊपर उठा ।बाहर दीदी दोनोंहाथ फैला करखड़ी है ।शायद धीरे-धीरेकह रही है "जल्दीआओ निरा ! मैंयहाँ हूँ ! "
मैंने सिर कोतेज़ी से झटका। शायद मौतसे पहले ऐसेही विचार आतेहैं ।
तभी दीपा काहाथ जोर सेहवा में लहरायाऔर धप सेफिर मेरे सीने पर आपड़ा । कलसे दीपा केदसवीं के बोर्डकी परीक्षा है। लेट -लतीफ़उठने वाली दीपाने आज घडीमें छह बजेका अलार्म लगायाहुआ है ।तो कल 18 मार्चहै । इसकेपक्का एक महीनेबाद ही मेरीशादी होगी ।"18 अप्रैल " हाँ यहीतारीख तय कीथी अनूप केघर वालों ने।
पांच साल पहलेभी इस घरमें शहनाई बजीथी । मुझेयाद है दुल्हनके सुर्ख जोड़ेमें दीदी कितनीसुन्दर लग रहीथी । " आजतो बन्नो रानीको दुल्हे मियांकी नज़र लगकर ही रहेगी" मैंने दीदी कोचुटी काटते हुएकहा था ।"धत्त पगली कहींकी ! " दीदी नेमेरे पीठ परएक प्यार भरीधौल रसीद करतेहुए कहा था।
पहली संतान माँ -बापकी आकाँक्षाओं कामूर्त रूप होतीहै । यहीकारण थापापा इस दिनबहुत खुश थे। सबको कहतेफिरते " अरे भाई! मैं तो शुरूसे ही जानताथा , हमारी अचलाको कोई डॉक्टरया इंजिनियर मुहखोल कर मांगलेगा ।"
दीदी की सुन्दरताही अद्वितीय थी। तभी तोजब वह बी.ए . के अंतिमसाल में हीपढ़ रही थीतभी उसके लिएअरुण का रिश्ताआ गया था।
अरुण रायबरेली में इंजिनियरथा । हमारे मामाका करीबी रिश्तेदार। पापा नेफ़ौरन यह रिश्तामंजूर कर लिया। आखिर कौनलड़के वाला अपनामुह खोल करखुद लड़की काहाथ मंगाते हैं।
मुह खोलने के साथही उनके मुहसे एक हल्कीसी आवाज़ भीसाथ ही आईथी । "लघुमांग " की ।लघु शायद इसलिएथी क्योकि दीदीकी सुन्दरता काभी ध्यान रखागया था ।
शादी वाले दिनइस लघु मांगसे पूरा पंडालभरा हुआ था। कार , रंगीनटी . वी . फ्रिज, ए . सी . , अलमारीऔर न जानेक्या -क्या ।
पापा की जीवनभर की जमा-पूंजी इसमें फूंक चुकीथी । मगरउनके चहरे परएक शिकन तकनहीं थी | मम्मी से कहतेफिरते थे "देखना अपनी अचलाससुराल में राजकरेगी , अरे ! इकलौती बहुहै , सारा राजपाठ तोउसे ही मिलेगा। "'
शादी के तीनमहीनों बाद दीदीआई थी ।उसका रूप औरनिखर गया था | मुझेवह किसी अप्सरासे कम नहींलग रही थी| पापा मम्मी ने दीदीऔर जीजा कीखातिर में जीजान लगा दियाथा । मगरन जाने क्योंमुझे लगा कीदीदी बात करतेकरते कहीं खोजाती थी ।या ख़ामोशी सेदीवारों को ताकतीरहती थी ।मैंने सोचा थाकी शायद यहसब नए माहौलमें अपने कोढालने की कोशिशका नतीजा है।
जब वे लोगजाने लगे तोपापा ने मशहूरहलवाई की दूकानसे मिठाई , फलऔर सूखे मेवोंके बड़े बड़ेडालिए साथ करदिए । आखिरदीदी पहली बारमायके आई थीखाली हाथ कैसेजाती ?
फिर एक दिनदीदी की एकचिट्ठी आई
''प्यारी नीरा ,
शुभ प्यार
सुनहरे सपने बिखरनेलगे हैं ।मैंने तो जीवनमें कभी किसीका बुरा नहींचाहा ? फिर यहसब मेरे साथही क्यों होरहा है ?
सुबह से रातके बारह बजेतक मैं जानवरोंकी तरह कामकरती हूँ ।लेकिन इन लोगोंके मुह सेकेवल जली कटीबातें ही सुनतीहूँ ।
मम्मी ने जोमुझे आपने गहनेदिए थे , वेसभी ननद कीभेंट चढ़ गएहै । यहलोग अफ़सोस करतेहैं की उन्हेंअपने काबिल लड़केकी पूरी कीमतनहीं मिली है। शायद इसीकी भरपाई येलोग मुझे दुःखदेकर करते हैं।
तुम सोच सकतीहो , उस दिनमुझे कितना दुःखहुआ होगा जबशादी के तीसरेदिन ही एकमामूली से बातपर अरुण नेमेरे ऊपर हाथउठाया था ।
तुम्हारी दीदी
मेरी आँखों के सामनेअँधेरा छा गया। प्यारी दीदीयह सब क्याहो गया ? पापातो चिट्ठी पढ़कर बुत हीबन गए थे। सात दिनोंतक उन्होंने किसीसे बात तकनहीं की थी।
मम्मी भी दुखीहोकर कहती " मेरीफूल सी बच्ची! क्या -क्या सपनेदेखे थे हमनेउसके लिए ।सब खाक मेंमिल गए ।''
फिर चिट्ठियों का जोसिलसिला शुरू हुआवह थमा हीनहीं । एकदिन जीजा जीआये और दीदीको छोड़ करचले गए ।
दीदी को देखकर हम सभीचौक पड़े थे। सिर्फ हड्डियोंको जोड़ कर बनायागया एक मानवपिंजर । थोड़ीही अवधि मेंदीदी एकाएक बूढ़ीलगाने लगी थी।
जीजा जी केजाने के बाददीदी पापा केकंधे से लगकर कितना रोईथी । बिल्कुलएक मासूम बच्चीकी तरह ।तब मैं औरदीपा कितने सहमगए थे ।
दीदी ने धीरे-धीरे मुझे बतायाकी उसके ससुरालवाले बहुत लालचीहैं । वेलोग ननद केलिए एक फ्लेटखरीदना चाहते हैं औरइस बात कीउम्मीद रखते हैंकी पापा उन्हें20 लाख रुपए दे। इसके लिएवे लोग दीदीको शारीरक औरमानसिक यातनाएं देते थे।
"जब तक रुपयोंका प्रबंध नहो जाए घरमत आना "'
यही उन लोगोंका फ़रमान था।
पापा को जबइस बात कापता चला तोउनके पावों तले जमीनही खिसक गई। व्याहता बेटीको आखिर कबतक घर मेंबैठा कर रखते। रोहतक मेंअपने पुरखों कीज़मीन बेच करउन्होंने अपने बेटीको 20 लाख रुपयेथमा कर विदाकर दिया ।
फिर तीन चारमहीनों तक दीदीकी कोई चट्ठीनहीं आई ।हम लोग समझरहे थे कीअब स्थितिसुधर चुकी होगी। आखिर किसीको दुःख देनेकी भी कोईसीमा होती है।
परन्तु शीघ्र ही पताचला हम लोगकितने गलत थे। इस बारदीदी बिलकुल अकेलेआई । अधमरीऔर बीमार सी। दीदी नेरोते रोते बतायाकी अरुण अपनाकारोबार करना चाहताहै । इसकेलिए वे लोगपापा से 20-25 लाखपाने की उम्मीदकर रहे हैं।
दीदी ने पापाको भरे गलेसे कहा था" पापा प्लीज मुझे वहांमत भेजिए ! वेलोग मुझे मारडालेंगें । ''
तब पापा नेदिवार को ताकतेहुए कहा था"अचला बेटी स्वार्थीमत बन ! तेरेपीछे तेरी दोबहनें और भीहैं । अगरतू अपना ससुराल छोड़कर यहाँ बैठजाएगी तो इनदोनों से कौनशादी करेगा ।''
और दीदी स्वार्थीनहीं बनी ।दो दिन बादही पापा दीदीको लेकर उसकेससुराल पहुँच गए ।उन्होंने हाथ जोड़कर उन लोगोंसे विनती की"मैं अपनी पूरीजमा पूंजी पहलेही शादी मेंलगा चूका हूँ। पुरखों कीजमीन भी बेचदी है ।दो साल बादही मैं रिटायरहो जाऊंगा , जरासोचिये ! अभी मेरीदो बेटियां औरभी हैं ।"
परन्तु वे लोगनहीं पसीजे | दीदी कीननद ने मुहबने हुए कहाथा '' जिसफ्लेट में आपलोग रहते हैंउसकी कीमत ही25 लाख रूपए होगी। मगर कुछलोग बेटी सेज्यादा पैसों को पकड़कर रहते हैं। यह सबतो आमिर घरमें बेटी देनेसे पहले हीसोचना चाहिए था।''
पापा अपमान का घूंटपीकर रह गएथे । शादीको दो सालही हुए थेकी एक दिनवह मनहूस टेलीग्रामआ पहुंचा
" अचला ने तीसरीमंजिल से कूदकर खुदकुशी करली है ।''
पुरे घर मेंमातम छा गया। मम्मी नेतो खाट हीपकड़ ली ।पापा के ऊपरकहर का पहाड़टूट पड़ा था।
हम लोग रायबरेलीगए थे ।दीदी के ससुरालवालों के चहरोंपर ज़रा भीदुःख का भावनहीं था ।दीदी की सासबोली '' बहु कोकितना मना कियाकी रैलिंग परमत बैठा कर। मगर उसकाबचपना जाता तबन । न जाने हमारेप्यार में क्याकमी रह गईथी की वहरैलिंग पर दालबीनने के बहानेचढ़ी और नीचेकूद पड़ी ।''
मुझे उन लोगोंके बनावटी दुःखप्रदर्शित करने परक्रोध आ रहाथा । पुलिसथाने मेंकेस दर्ज हुआ" आत्महत्या का मामला''
नहीं दीदी तुमआत्महत्या नहीं करसकती थी ।तुम्हें मारा गयाथा । पापाने भी अपनामुह बंद रखनाउचित समझा क्योकिउनके सामने दो-दो बेटियों केभविष्य का सवालथा । न जाने यहकैसी विडम्बना थी।
दीदी की मौतके छह महीनोंबाद ही पताचला की अरुणने दुबारा शादीकर ली थी। इस बारउन्होंने एक गरीबघर की लड़कीको अपनी बहुबनाने की गलतीनहीं की थी।
पिछले वर्षमैंने भी स्नातककी परीक्षा पासकर ली थी। प्रत्येक पिताका एक हीसपना होताहै । अपनीबेटी की डोलीदेखने का ।अनूप एक अच्छेखाते - पीते घर कालड़का था औरउसके घर वालोंकी ''लघु मांग'' के अलावा औरकोई मांगनहीं थी ।
मुझे याद हैसगाई में अनूपकी माँ मेरी बलाएंलेते हुए बोलीथी " लड़कीतो लक्ष्मी होतीहै ! उसके घरमें आते हीघर सुख -समृद्धिसे भर जाताहै । ''
कीटनाशक दवाईकी शीशी परमेरे हाथ कीपकड़ मजबूत होगई ।
ससुराल में सुखसमृद्धि का एकही रास्ता हैपापा के प्रोविडेंटफंड का सफाया। मेरी आँखोंके सामने पापाका खांसता हुआचेहरा घूम गया। मम्मी काकरहाना । क्यामैं इन लोगोंके बुढ़ापे कीआखिरी आस भीछीन लूंगी ? सारापैसा मुझ मेंलगा देंगें तोदीपा का क्याहोगा ? नहीं मेरेजीने से किसीका भला संभवहोते नहीं दिखताहै ।
तभी लगा कीमैं पिघलते हुएकोलतार की सड़कपर भाग रहीहूँ । गर्म-गर्म कोलतार मेरेपैरों को जलरहा है ।तभी सामने बबूलका एक पेड़दिखाई दिया , जिसमें एकफंदा लटक रहाथा | हाँ यहीमेरी मंजिल है।
तभी मैंने पीछे मुडकर देखा , मेरेपीछे - पीछे दीपाभागी -भागी आरही है "रुकोदीदी मैं भीतुम्हारे साथ जाउंगी"
और उसके पीछेन जाने कितनीलड़कियां भागी चलीआ रहीं हैं।
मेरा शरीर पसीनेपसीने हो उठा। फिर लगामेरे शरीर कापोस्ट मार्टम होरहा है ।मोहल्ले के लोगचटकारे लेकर तरहतरह की बातेंकर रहे हैं। पापा मम्मीजीते जी मरचुके है ।दीपा से लोगमेरे बारे मेंतरह तरह केसवाल पूछ रहे हैं, और वह मासूमखाली रोती जारही है ।अपनेछत- विक्षिप्त शरीरको देख करमेरे मुह सेचीख निकलते निकलतेरह गई ।
शीशी पर मेरेहाथ की पकड़ढीली हो गई। दीदी केबाद मैं , मेरेबाद दीपा औरउसके बाद नजाने कितनी लड़कियोंका यह हश्रहोगा ।
इस सिलसिले कोकहीं तोरोकना ही पड़ेगा।
शीशी मेरे हाथसे फिसल करफर्श पर गिरपड़ी । नहींदीदी मैं तुम्हारारास्ता नहीं अपनाउंगी। मुझे अभीजीना है ।शायद मौत सेज्यादा कठिन जीनाहै और इसीजीने में मेरीजीत है ।
टर्न-टर्न …टर्न-टर्न .....अलार्मघडी बजने लगी। इसका मतलबछह बज गए है। मैंने दीपाको झंझोर करउठाया । दीपाआँखें मलते हुएउठी और मुहधोने बाहर चलीगई ।
मैं उठी मैंनेखिड़की का पर्दासरकाया । बाहरपालाश के पेड़के पीछे सेसूरज उग रहाथा । मानोसूरज का लालरंग चुरा करपालाश के फूलखिल उठे हो।
मुझे अपनी कल्पनापर हंसी आगई ।
सामने देखा मेरानोट पड़ा हुआथा । उसेउठा कर उसकेटुकड़े टुकड़े करकूड़े दान केहवाले किया ।
मेज़ की दराज़से एक फोरमनिकला कर उसेपेपर वेट सेदबा दिया ।
'' सब-इंस्पेक्टर के लिएआवेदन पत्र "
और एक नन्हीसी मुस्कान मेरेचहरे पर खिलगई ।
द्वारा
गीता मिश्राझा
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