श्री राम राघो यही प्रार्थना है
ऐ राम ! हे राम ! मैं भजन हीन हूँ ,साधन हीन हूँ ,ज्ञान हीन हूँ ,भक्ति हीन हूँ ,क्रिया हीन हूँ, राम ! शरणागत हूँ | मैं देह-सुख नहीं चाहता | अष्ट-सिद्धि तो क्या, शत सिद्धियाँ भी नहीं चाहता | मैं शरणागत हूँ,शरणागत | बस वही करो जिससे तुम्हारे पादपद्मों में शुद्ध भक्ति हो, और तुम्हारी भुवनमोहिनी माया से मैं मुग्ध न होऊँ | राम ! मैं शरणागत हूँ |
- श्री रामकृष्ण परमहंस
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
प्रार्थना
श्री राम राघो यही प्रार्थना है ।
सीतापते हे यही भावना है ।।
निष्काम होके गाऊं निरन्तर ।
रघुनाथ मेरी यही कामना है ।।
श्री राम राघो रघुवंष भूषण ।
मेरे हरो नाथ त्रय ताप दूषण ।।
दे दो सुबुद्धि गाता रहूं मै ।
श्रीराम रघुनन्दन राघवेती ।।
हे राम राघो त्रय ताप हारी ।
मेरी सुनो हे सारंग धारी ।।
ध्याता युगल रूप तन नाथ त्यागुं ।।
गाता तजूं प्राण श्री राम सीता ।
देहान्त काले प्रभु सामने हो ।।
वैदेही सहित सारंग पाणी ।
भगवान मेरी यही प्रार्थना है ।।
रघुनाथ मेरी यही याचना है ।।
बार बार वर माँगउ हरषि देहु श्री रंग |
पद सरोज अनुपायनि ,भगति सदा सत्संग ||
द्वारा
भागवत ठाकुर
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