Sunday, February 23, 2014

यात्रा !!!!


कृष्ण !!!! तेरी याद सदाबहार फूल के जैसे मेरे दिल में हर समय महकती रहती है मुद्धते बीत गई मालूम नहीं मैं कबसे तुमसे बिछुड़ी हुई हूँ   युग पर युग , जन्म  पर जन्म बीत गए , मैं एक आवारा सितारा, एक अणु , एक शरीर, एक आत्मा अपनी एक छोटी सी पहचान लिए चलते चलते, घूमते घूमते, चक्कर काटते काटते कितनी योनियों में पैदा हुई फिर  भी मैंने  तेरी पवित्र विरहाग्नि की लौ को कभी बुझने  नहीं दिया |  

तेरे सांवले चहरे के आकर्षण और मोहिनी से मैं आज तक मुक्त नहीं हो पाई हूँ | मेरी घनी , घुमावदार , निराश और उदास पलकों  में तेरा अक्स हमेशा के लिए कैद है । गहरी  उदासी के नीले समुन्द्र की लहरों में थपेड़े खाते हुए  , मैं अपने ह्रदय में व्याकुलता लिए हुए  हर पल किनारे लगने के लिए  बेकरार  हूँ ।

कभी कभी तेरी बंसी कि तान मेरे भावनाओं की  सिमटी हुई दुनिया  में हलचल मचा देते  हैं   मेरा दिल मीठे दर्द में  सराबोर हो जाता  है और  मेरे होंठों पर एक अजीब निराशापूर्ण मुस्कराहट फ़ैल जाती है। तेरी बंसी की  उस  नाजुक  लय पर मेरी बेसब्र विरहणी रूह खिंची चली जाती है  

 नदी की खामोश   सतह पर फैली  हुई जादू भरी  रोशनी ,  मेरे अंदर जन्मों जन्मों से प्रेम कि दबी हुई आग को भड़का देती है , और एक बिछुड़े हुए प्रेमी कि याद में गुलाब की  कोमल पंखुण्डियों से नाजुक मेरे गालों  पर आंसू  कि पंक्तियाँ उकर  जाती हैं मैं उन आंसुओं को नही पौंछती क्योंकिमेरा पाकीजा दिल  इनके भेद को जानने  के लिए बेताब है। 

शायद कभी तुम प्रकाश के महास्रोत बन कर एक कभी नहीं डूबने वाली कश्ती में  सवार होकर  आओ और मेरे  चहरे पर आसुंओं के जमी हुई काजल के स्याह परतों को पोंछ  कर हँसते हुए अपनी निराली यात्रा में  मुझे भी शामिल कर लो  

उस सपनीले मिलन बेला में  चमचमते हुए असंख्य सितारोंकी  कंप कंपाती रौशनी मेंमैं चोर निगाहोंसे तुम्हारी  सफ़ेद दूध जैसी  बेदाग चांदनी वाली मुस्कानदेखूंगी  और  मैं पहली बार असीम  सब्र की  एक सांस लूंगी   शायद फिर भी मैं तुमसे यह कह सकूं कि उस समय भी  मेरा दिल यह सोच कर धड़क रहा होगा कि  कहीं  यह अजर और अमर क्षण समाप्त हो जाए और तुम फिर से अपरिचित बन मुझे अनंत इंतज़ार के पलों में धकेल दो। 

आग बरसाती हुई तपती हुई दोपहरी में ,  एक ढेढ़ी मेढ़ी  संकरी पगडण्डी बन कर एक  विराट आसमान के सीने को छूने की  मेरी यह कोशिश शायद  तुमें बचकाना लगे , और तुम मेरी इस  अशिष्ट  सोच पर हंसो भी |

 तुम्हारे लिए मेरी यह बेपर्दा महोब्बत शायद  तुम कभी समझ सको   और मेरा तन्हा दिल सकून  पा सके ! मैं अपनी नज़रें नीची किये हुए लड़खड़ाते क़दमों से  अपने तलवों की थकान कि  परवाह किये बिना , भूखी प्यासी   उस असीम , अज्ञात  कठिन यात्रा में तुम्हारी  सहयात्री बनूँगी क्योंकिइस बार मैंने नहीं तुमने  मेरा हाथ थामा   है


 द्वारा 
गीता झा 

Tuesday, February 18, 2014

Astro Analysing Kundalini Yoga

In every human being there is source of divine energy called kundalini which mainly remains in dormant state in the individual, but when the kundalini energy arises and awake the seeker make rapid progress in the field of spirituality.
There are many similarities between microcosm's human body and macrocosm entire universe. All elements, all things present in universe are also present in the physical body. The planets and celestial bodies exert astrological vibrations upon our physical body which further influence our personality and spirituality. In a layman language we can say that at subconscious level the solar system is our larger body and the human body acts as a miniature solar system.
According to Indian astrology the essence of soul is influenced by the placement and power of Sun in the horoscope. Moon affects the mind, Mars influences the blood, Mercury affects speech and intellect, Jupiter denotes knowledge, Venus linked with seminal fluid and Saturn is the agent of mysterious experiences in the life.
The seat of kundalini is the point where Capricorn and Aquarius meet in the Root chakra where as the sign Leo and Cancer intersect at the Third eye or Ajna chakra. The psychic kundalini passage is denoted by the nodal axis with North Pole as Root chakra and South Pole as Ajna chakra.
Astrological factors influencing a kundalini yogi:
Kundalini Shakti axis:Rahu/Ketu nodes indicates serpentine kundalini power axis. Rahu represents ego and physical body its desires and gratification and placed at North Pole or the Root chakra. Ketu on the other hand represents renunciation, liberation and ultimate freedom from material affairs resented by South Pole of Crown chakra. When Rahu succeeds in turning its purpose from material gratification and raises its level to the spirituality of Ketu, rising of kundalini power begins. In this mystical journey Rahu from the root chakra unify with the Ketu at Crown chakra for enlightenment.

Mooladhar or Root chakra: Saturn, earth element,gives physical shape to our body; equivalent endocrine glands are sex and gonads.
Swadisthana or naval chakra: Jupiter, water element, rules feelings and sexuality
Hara or Manipur Chakra:Mars, fire element, will power, rules power and action.
Anahata or Heart chakra:Venus, air element, thymus gland, indicates universal love.
Visudhi or Throat chakra:ether as element, Mercury, thyroid and parathyroid, rules awareness of a person.
Ajna or Third eye chakra:no element, Sun/Moon, pituitary gland, indicates self realization.
Sahastrara or Crown chakra: penal gland, the seeker is being eternally established in oneness of the God.
8th house: indicates mystical and secret techniques of spiritual advancement.
Scorpio/Cancer/Pisces: are water signs represents moksha.
4th/8th/12th house:are salvation houses.
Planetary conditions in Horoscope responsible for Kundalini Awakening: - 
·         Jupiter posited in 8th house or related with 8th house or more planets placed in 8th house indicates advancement in kundalini yoga.
·         Venus and lord of 10th house are related by square/conjunction/trine/opposition/aspect/association /Parivartan
·         Venus related to Jupiter/Saturn
·         Sun and Jupiter are influenced by Moon/Rahu
·         Rahu falling in fire signs [Aries, Leo, and Sagittarius] indicates quick advancement towards mystical powers and attainment of powerful siddhis.
·         Placement of Saturn in tenth house from Ascendant or Moon indicates rapid spiritual progress.
·         Saturn related to Sun indicates sudden rise in spiritual field which sometimes demands sacrifice at some stage of life.
·         Jupiter and Saturn trine/quadrant to each other indicates
·         Lords of 9th and 10th house are related in any way indicates spiritual advancement.
·         The Atma Karaka [planet in the highest degree in the horoscope] will fall in moksha or salvation houses [4th, 8th, and 12th] and libration signs [Cancer, Scorpio, and Pisces] indicate higher spiritual awareness.
·         Atma Karaka falling in watery signs in Navamansa chart indicates final libration, because a water sign represents dissolution or merging with infinite.
·         Placement of Jupiter and Ketu or Moon and Ketu in 12th house indicates attainment of very higher spiritual plane after death.
·         In a horoscope, if the number of conditions applicable is more than one then the kundalini awakening becomes easier and fast.

Case study of a great kundalini yogi Raman Maharishi:
Shri Raman Maharishi [December 30, 1879--April 14, 1950] was born to a Tamil Brahmin family in Tamil Nadu, was a spiritual master and a well versed kundalini yogi.
The basic details of horoscope of Raman maharishi are:
Name: Ramana Maharshi
Date of Birth: Tuesday, December 30, 1879
Time of Birth: 01:30:00
Place of Birth: Madurai
Longitude: 78 E 7
Latitude: 9 N 55
Time Zone: 5.5
Information Source: Lagna Phal (Garg)


Ascendant -Libra--nil
2nd house-Scorpio-Mercury and Venus
3rd house-Sagittarius-Sun and Rahu
4th house-Capricorn-nil
5th house-Aquarius-Jupiter
6th house-Pisces-Saturn
7th house-Aries-Mars
8th house-Taurus-nil
9th house-Gemini-Moon and Ketu
10th house-Cancer-nil
11th house-Leo-nil 
12th house-Virgo-nil
Astro analysing the horoscope of Raman Maharishi: 
·         Saturn placed 10th from the Moon indicates sanyasi yoga.
·         Sun and Saturn are quadrant to each other indicates spirituality.
·         From Moon ascendant 9th lord Saturn and 10th lord Jupiter are making mahayoga by exchange of places.
·         Rahu falls in fiery sign Sagittarius indicates advancement in kundalini yoga.
·         Sun is influenced by Rahu and Moon denotes mystical insight.
·         Raman took the sanyas at the age of 17 in the Mahadasa of Saturn and sub period of Mars.

By
Geeta Jha
India

Sunday, February 16, 2014

रेकी - वैकल्पित चिकित्सा पद्धति

रेकी  चिकित्सा पद्धित  जापानी पद्धति है।  इसके प्रवर्तक डॉ मिकाओ यूसुई हैं, जिन्होनें ऐसी प्रवृति कि ऊर्जा तरंगों को खोज निकाला जो  मनुष्य कि हथेलियों और हाथों से विकरित  होती है , जिनमें किसी भी रोग को दूर करने कि क्षमता विद्यमान  होती है। 


 इन ऊर्जा तरंगों के माध्यम से  स्पर्श द्वारा या पृथ्वी पर कहीं  भी स्थित रोगी का रोग दूर किया जा सकता है।  

डॉ  .  यूसुई के अनुसार  इन रेकी  ऊर्जा तरंगों का प्रभाव सूक्ष्मशरीर पर होता है ये    पूर्णतः हानिरहित होती है।  उनके  अनुसार यह  ईश्वरीय ऊर्जा है जो  ब्रह्माण्ड से अवतरित होकर रेकी चिकित्सक के शरीर में प्रविष्ट होती है , एवं निकलती है। 

मानव-विकास प्रक्रिया में विज्ञान कि उन्नति के कारण  मानव ने आज अज्ञात जगत के कई रहस्यों को जान लिया है।

हर मनुष्य अपनी सीमाओं के साथ जन्म लेता है उसकी हर वस्तु - तथ्य के निरिक्षण -परीक्षण करने कि सीमा होती है।  जैसे हमारी आँखें एक खास वेवलेंथ को पकड़ पाती हैं और एक खास  वेवलेंथ पर हमारा कान सुनता है।  सीमा के ऊपर और नीचे  करोड़ों  करोड़ों वेवलेंथ है।  आज हमें अल्ट्रावॉयलेट, इन्फ्रारेड, रेडियो वेव , इंफ्रासोनिक, एक्स -रे  इत्यादि कि जानकरी है।  ये तरंगें ब्रह्माण्ड में प्रतिक्षण  उपस्थित है, एवं निरंतर हमारे ऊपर प्रभाव  डालती रहती हैं।  लेकिन अपनी सीमाओं के कारण  साधारणतः हमें इनका पता नही चलता हैं।  अत्यंत विशिष्टि यंत्रों के माध्यम से ही इनकी  उपस्थिति जानी जा सकती है।


हमारे आसपास से करोड़ों ध्वनियाँ  गुजर जाती हैं जिनका हमें पता भी नही चलता है।  अगर एक तारा  ब्रह्माण्ड से टूटता है तो उसकी भयंकर गर्जना हमारे चारों  तरफ से निकल जाती है , लेकिन हम  उसे नही सुन पाते हैं।  इसी प्रकार हमारे नेत्र एक्स-रे , इन्फ्रारेड , अल्ट्रावॉयलेट इत्यादि प्रकाश  किरणों को नही देख पाते हैं।  यहाँ तक कि हमारे शरीर में विद्यमान तापमान का भी दायरा है।  अठानवे डिग्री से एक सौ दस डिग्री के मध्य हम  जीते हैं।  अठानवे से नीचे एवं एक सौ दस के ऊपर भी तापमान होता है, लेकिन इस सीमा से नीचे  या ऊपर जाने से दोनों हालात में हम  मृत्यु के करीब पहुँच जाते हैं। 

ब्रह्माण्ड से निरंतर कई ऊर्जा तरंगें हमारे शरीर पर गिरती है और निरंतर हमें प्रभावित  करती हैं।  ब्रह्माण्ड में व्याप्त असंख्य ऊर्जा तरंगों में से कई तरंगें मनुष्य के ऊपर स्वाथ्यकारी प्रभाव डालती है।  इस ऊर्जा तरंगों में विस्मयकारी स्वास्थ्य-प्रदान करने वाले गुण होते हैं।  ऐसी तरंगों  को  डॉ यूसुई ने ईश्वरीय-ब्रह्मांडीय तरंगें कहा एवं ये "रे "के नाम से जानी जाती हैं।

 जिस प्रकार एक रेडियो  के ऊपर कई ध्वनि तरंगें पड़ती है लेकिन वह उस विशिष्ट स्टेशन पर ट्यून कर देने से ही  वह उस  विशिष्ट स्टेशन कि वेवलेंथ को पकड़ पाता  है।  उसी प्रकार  रेकी के माध्यम से ईश्वरीय ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों का अनुभव हो पाता  है।  इसके लिए रेकी मास्टर एक निश्चित प्रक्रिया से शरीर का एट्यूनमेंट  करता है।
 
ऊर्जा के सहारे  यंत्रों का संचालन  में जिस विद्युत कि आवश्कता होती है उसे  जीव-विद्युत कहा जाता है , इस विद्युत तरंगों को अब सूक्ष्मग्राही यंत्रों द्वारा अनुभूत किया जा सकता है।  इन विद्युत तरंगों को  वैज्ञानिक बायो -मैग्नेटिजम , बायो- प्लाज्म  , एक्टो-प्लाज्म , बायो-फ्लक्स आदि नामों से सम्बोधित करते हैं।   डॉ  .  किर्लियन  एवं डॉ  .थैल्मामास  ने किर्लियन तथा ऑर्गन फोटोग्राफी द्वारा इनके रंगीन चित्र भी खींचे है।  डॉ यूसुई के अनुसार यह  जीवनी शक्ति "की  " है।  जो प्रत्येक व्यक्ति ,जीव,  पदार्थ में निवास करती है |

रेकी के माध्यम से ईश्वरीय- ब्रह्मांडीय शक्ति और जीवनी शक्ति का सामंजस्य स्थापित कर स्वास्थ्य  पाया जाता है इनके असंतुलन से ही नाना प्रकार  के शारीरिक  -मानसिक  व्याधियां उत्पन्न होती है |
मानव शरीर में जो विद्युत -प्रवाह है वह सूक्ष्म शरीर में होता है।  इस सूक्ष्म शरीर में अनेक  शक्ति केंद्र हैं जहां विद्युत  भंवर बनाते हैं।  जिनमें इस शक्ति पुंज का निर्माण होता है।  प्रत्येक विद्युत- भंवर या चक्र का सम्बन्ध जीव के शारीरिक -मानसिक-आध्यत्मिक क्रिया -कलापों से जुड़ा रहता है।  जिस क्षेत्र में चक्र में सक्रियता होती है वहाँ विद्युत की तीव्रता  अधिक होती है |



जहां इन चक्रों कि गति , स्थति या बनावट  में विकार उत्पन्न होता है , उसी विशिष्टचक्र से सम्बंधित  शारीरिक-मानसिक  क्षेत्र रोगग्रस्त हो उठता है| 

रेकी के अंतरगत  इन शक्ति केन्द्रों को ब्रह्मांडीय ऊर्जा तरंगों के माध्यम से एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा ट्यून किया जाता है।  इससे शरीर कि विद्युतऊर्जा का "वोल्टेज "अत्यधिक बढ़ जाती है और किरणों का  उत्सर्जन अधिक हो जाता है |  इस प्रक्रिया के माध्यम से रेकी चैनल  ब्रह्मांडीय ऊर्जा के माध्यम से अपने शरीर के ऊर्जा केन्द्रों को जागृत कर अपने शरीर  कि विद्युतशक्ति को कई गुणा  बड़ा लेते हैं | कालांतरमें अपने हाथों कि हथेलियों के माध्यम से उस अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा  का उपयोग  रोगी के विकार ग्रस्त ऊर्जा केन्द्रों को सक्रिय करने में किया जाता है।  शीघ्र ही रोगी के शरीर में जो ऊर्जा का असंतुलनथा वह धीरे-धीरे ठीक होने लग जाता है, और  रोगी स्वास्थ्य लाभ उठाने लग जाता है।


अतः रेकी एक अत्यंत प्रभावशाली, निरापद एवं अध्यात्मिक वैकल्पित चिकित्सा  - प्रणाली  है। 
द्वारा
गीता झा
भारत