जून 1 9 9 4 में दिल्लीसे हम लोगएक बस परबद्रीनाथ और केदारनाथधामों की परचले । बसपर कुल 2 8 यात्रीथे । बसपहले केदारनाथ केमार्ग चली औरगौरीकुंड जो सड़कमार्ग का अंतिमपड़ाव है पररुक गई | सभीयात्री उतरकर गौरीकुंड मेंस्नान और जलपानकर केदारनाथ धामकी यात्रा परचल पड़े ।
बहुत सारे यात्रियोंने गौरीकुंड सेही घोडा लियाऔर बाद मेंकेवल दो जनोंको छोड़ करशेष सभी नेआधे रास्ते सेघोड़े कीसवारी कर लीथी । दोमें एक मैंऔर दूसरी मेरीधरमपत्नी थी जिन्होंनेआग्रह किया थाकी शिवजी केधाम की पैदलही यात्रा करेंगें। श्रद्धा केसामने मैं नतमस्तकथा । दोनोंकी उम्र 5 0 सेअधिक थी ।सभी सह -यात्रीघोड़ों पर आगेबड गए थे, फिर मैंने भीअपनी पत्नी कीआस्था पर चोटपहुँचाना उचित नहींसमझा ।
दुर्गम चढ़ाई केकारण हमदोनों काफी थकगए थे ।बारिश भी होरही थी ।गुप्प अँधेरा थान कोई यात्रीआगे दिखाई देताथा और नही कोई पीछेदिखाई देता था। हम दोनोंदो या तीनमिनट से अधिकनहीं चल पारहे थे ।चलते चलते बैठजाते फिर उठकर आगे बड़नेकी चेष्टा करतेथे ।
धरमपत्नी का हाथपकड़ा तो एकहाथ एकदम ठंडातो दूसरा एकदमगर्म था ।शिवजी का नामलेते लेते 8 बजेरात में हमलोग केदारनाथ धामपहुंचे ।
वहां हमारे सभी सह-यात्री भोजन कररहे थे औरहम दोनों केलिए चिंतित थे। बारिश मेंहमदोनो बिलकुल भींग चुकेथे । कमरेमें पहुँच करहमने अपने अपनेकपडे बदले ।मुझे बुखार चढ़चूका था , मैंभोजन के लिएनहीं जा सकातो मेरी धरमपतनीने भी उपवासरख लिया था। रात मैंमेरी तबियत चिंताजनकहो गई थीतभी सुनने मैंआया की हमलोगों का ग्रुपलीडर जो अभीअभी अपने नौकरीसे रिटायर कियाथा भोजन करतेकरते सबसे बातेंकरते करते अचानकगिर कर बेहोशहो गया था।
कुछ घंटों के बादखबर आई कीडॉक्टर हमारे लीडर कोबचा नहीं सकीऔर हार्ट -अटैकके कारण वेचल बसे ।उनके साथ उनकीपत्नी और बूढ़ीमाँ भी थी। उन दोनोंने आग्रह कियाकी शव कोदिल्ली ले जायाजाये ।और यह निश्चयहुआ की सभीप्रातः 6 बजे केदारनाथधाम छोड़ देंगें।
मैं प्रातःकाल उठा तोमेरा बुखार उतरचूका था ।कमरे से बाहरआया तो देखाधरमपत्नी इतनी ठंडीमें सड़क केनल से ठंडेपानी से स्नानकर रही थी। गौरीकुंड सेहमलोंगो के साथएक पंडा भीआया था ।उनको देख करमैंने कहा की "शिवजीका दर्शन नहींहो सकता हैक्या ? " यह सुनतेही पंडा बहुतबिगड़ गया औरबोला “हम लोगतो शव कोदिल्ली भेजने के प्रबंधमें लगे हुएहैं और अगरअभी आप लोगदर्शन की पंक्तिमें भी बैठजाते हो तोभी आपकी बारीतो 2 बजे सेपहले नहीं आएगी। और फिरआप सभी कोअभी एक घन्टेमें यहाँ सेरवाना भी होनाहै । "
पंडा ठीक हीबोल रहा था। मैंने सोचाकी केदारनाथ मंदिरके द्वार परही माथा टेक आऊं। मंदिर गयातो वह अभीखुला भी नहीथा । दर्शनार्थीसर्प की कुंडलीके आकर मेंसटे सटे बैठेथे । द्वारतक जाना भीसंभव नहीं था, क्योंकि दर्शनार्थी की कईकई पंक्तियाँ बैठीहुई थी ।खड़े खड़े हाथजोड़ कर शिवजी को प्रणामकिया और लौटचला ।
मंदिर के प्रांगणसे उतरा हीथा की देखामेरी धरमपत्नी स्नानकर शिवजी केलिए घर सेजो यज्ञोपवित, अगरबत्तीऔर अन्य पूजन-सामग्री लाइ थीहाथ में लेकरशिव जी काजप करते करतेआ रही थी। मैंने जोकुछ देखा उसेबता दिया औरकहा की केदारनाथदर्शन तो असम्भवहै |
मेरे कथन कीकोई भी प्रतिक्रियाउसके ऊपर नहींहुई । मंदिरके प्रांगण मेंपहुंचकर वह एककोने में खड़ेहोकर अचानक विह्वलहोकर रोने लगीऔर कहने लगी " बाबा!!! क्या हम लोगइतने पापी हैंकी यहाँ तकपहुँच कर बिनाआपके दर्शन कियेलौट जायेंगें ? "
सामने से एकदस-बारह वर्षका लड़का आया। मुझे लगाकी वह मंदिरका ही कोईकर्मचारी होगा ।दिल्ली से चलतेसमय मित्रों औरसम्बन्धियों ने शिवजीके चढ़ावे केरूप में रूपएदिए थे ।मैंने सारे रूपएऔर पत्नी केहाथों में जोपूजा की सामग्रीथे लेकर उसलड़के को देतेहुए कहा की" हम लोग दिल्लीसे आये हैं, हम लोगों केग्रुप-लीडर कीगत रात मृत्युहो चुकी है, कृपया सामग्री औररूपए आप अपनीसुविधानुसार बाबा कोचढ़ा देना , क्योकिहम लोगों कोअभी तुरंत वापसलौटना है ।"
उस लड़के नेसामान नही लियाऔर कहा आपलोग सीधे मेरे साथनीचे आइये। वह हमेंमंदिर कमिटी केसदस्य के पासले गया ।सदस्य ने कहाकी आप लोगदर्शन नहीं करसकते हैं क्योकि " छुतक" हो गया है। मैंने उन्हेंकहा की मैंबिहार का मैथिलब्राह्मण हूँ औरजिनकी मृत्यु हुईहै वे पंजाबीखत्री थे , इसलिएछुतक लागू नहींहोता है ।
सदस्य ने हमदोनों को 5 मिनटरुकने के लिएकहा और फिरहम दोनों कोको लेकर चला। इसी बीचउस बालक नेशिवजी को चढ़ानेके लिए प्रसादकी व्यवस्था करदी थी ।दर्शनार्थी के सरोंको टापते हुएहम लोग जारहे थे ।
मुख्य द्वार अभी तकनहीं खुला था। एक दुसरेद्वार के समीपहमें कमिटी कासदस्य ले गया, धरमपत्नी तो मंदिरके अन्दर प्रविष्टकर गई लेकिनवह मेरा हाथमजुबुती से पकड़ीहुई थी ।मुझे द्वार परपंडों ने रोकलिया था ।लेकिन धरमपत्नी केहाथ पकडे रहनेके कारण मुझे भीउन लोगों कोअन्दर जाने देनापड़ा ।
मंदिर के अन्दरजाने पर देखातो पाया कीएक पंक्ति मेंकरीब 5 0 भक्त थालियोंमें धूप -दीप, पूजन सामग्री लेकर खड़ेहुए थे ।वे सब शायदVIP लोग या मोटी रकमदान मेंदिए लोग थे। सभी पूजाप्रारंभ होने परअपनी अपनी बारी काइन्तजार कर रहेथे ।
पत्नी उस पंक्तिमें न लगकर उनके लौटनेवाले रास्ते सेआगे बढ़ गईऔर सीधे पुजारीजी केपास जाकर बैठगई । जोइन VIP लोगों के लिएपूजा प्रारंभ करवानेवाले थे ।वहां केवल ॐनमः शिवाय काजाप चल रहाथा । मन्त्रछोड़ कर कोईकुछ भी नहीबोल रहा था ।
पत्नी ने एक-एक कर यज्ञोपवित, अगरबत्ती औरअन्य पूजन सामग्रीबाबा को श्रद्धाभाव से अर्पितकिया । शिवजी के शरीरसे चन्दन लेकरउन्होंने हम दोनोंके माथे परटीका लगाया। दोनों शिवजी का भाव-विभोर होकर दर्शनकर रहे थे।
कोई हमें कुछनहीं कह रहाथा .... कि हमलोग वहां सेहट जाएँ , क्योकिपंक्ति में खड़ेलोग जिनके लिएअभी पूजा प्रारंभकरनी थी शायदयही सोच रहेथे की यहजोड़ा बिना पंक्तिका सर्व प्रथमपूजा का अधिकारीबना है अवश्यही कोई ख्यातिप्राप्त VVIP होगा ।
फिर आपने आपहम दोनों उठेऔर वापस लौटे। हमारे साथ केसभी सह-यात्रीलौट चुके थे। ऐसे दर्शनका लाभ तोबिरलों को भीनसीब होता है।
हम दोनों नेभी घोड़ों कीसवारी की औरअति शीघ्र गौरीकुंडपहुँचकर उसीबस से वापसदिल्ली लौट आये।
मैंने अपनी धरमपत्नीसे पूछा कीवह मंदिर केअन्दर पंक्ति मेंक्यों नहीं लगीथी , तो उसनेजबाब दिया कीविह्वल होकर शंकाकरने के बादउसे कुछ भीहोश नहीं था।और शंका का समाधान कर मदिर के द्वार से न लौटाने वाला वह बालक शिवजी को छोड़ कर दूसरा कोई नही हो सकता | शिवके दर्शन करनेके बादही उसकी चेतनापुनः जागृत हुई।
अपनी धरमपत्नी की श्रद्धाऔर विश्वास केसमक्ष मैं नतमस्तकथा ।
द्वारा
जनमेजय मिश्र
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